L2 Empuraan Review: स्टाइल के चक्कर में छूट गई कहानी! रिव्यू पढ़कर Sikandar और एम्पुरान के बीच कर पाएंगे चुनाव

मलयालम फिल्म एल 2 एम्पुरान (L2 Empuraan) सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। मोहनलाल स्टारर एल 2 एम्पुरान को लेकर बज बना हुआ था। एडवांस बुकिंग में फिल्म ने अच्छा कलेक्शन किया। अगर आप फिल्म को देखने की योजना बना रहे हैं तो पहले इसका रिव्यू जरूर पढ़ लें। इसके बाद आपको सिकंदर और एम्पुरान के बीच चुनाव करने में मदद मिल पाएगी।

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। साल 2019 में आई मलयालम फिल्‍म लूसिफर का हिंदी डब वर्जन काफी पसंद किया गया था। फिल्‍म के निर्देशक पृथ्‍वीराज सुकुमारन ने इस फिल्‍म को तीन पार्ट में बनाने की बात कही है। अब फिल्‍म का दूसरा पार्ट सिनेमाघरों में रिलीज हो चुका है। इसे एल 2: एम्‍पुरान के तौर पर प्रचारित किया गया। हालांकि हिंदी में स्‍क्रीन पर शीर्षक एम्‍पुरान (लूसिफर 2) लिख कर आता है। मूल कहानी में मुख्यमंत्री पीके रामदास (सचिन खेडेकर) की मृत्यु के बाद उनकी पार्टी उनके उत्तराधिकारी की तलाश कर रही होती है। रामदास के दामाद बाबी (विवेक ओबेरॉय) नापाक मंसूबों के साथ सत्ता हथियाने का तरीका भी लेकर आते हैं। हालांकि उनके रास्ते का रोड़ा बनता है स्टीफन नेदुम्पल्ली यानी लूसिफर (मोहनलाल)। उनकी मुश्किलों में मदद को तत्‍पर नजर आते हैं जायद मसूद (पृथ्वीराज सुकुमारन)। अंत में स्‍टीफन सत्ता को रामदास के बेटे जतिन (टोविनो थामस) को सौंपकर विदेश चला जाता है। सीक्वल में कहानी इन्‍हीं पात्रों की दुनिया को आगे बढ़ाती है।

फिल्म की कहानी क्या है?

एम्‍पुरान में कहानी का आरंभ साल 2002 में सांप्रदायिक हिंसा में किसी तरह जीवित बचे किशोर के साथ होती है। वहां से कहानी वर्तमान में केरल आती है। केरल के मुख्यमंत्री के रूप में जतिन रामदास के निराशाजनक कार्यकाल के पांच साल बाद एक नई राजनीतिक ताकत उभर रही है। वहीं लूसिफर अब कुरैशी अब्रराम (मोहनलाल) के तौर पर विदेश में अपना बड़ा नेटवर्क बना चुका है लेकिन ड्रग्‍स के धंधे के खिलाफ है। वह अपने प्रतिद्वंद्वी माफिया सरगना कबुगा को मार देता है और खुद के मारे जाने का षड्यंत्र रचता है। उधर, जतिन अपनी नई पार्टी बनाने का ऐलान करता है और बाबा बजरंगी (अभिमन्‍यु सिंह) के साथ गठजोड़ करता है। केरल में बिगड़ते राजनीतिक माहौल की खबर मिलने पर लूसिफर वापस केरल लौटता है।
ल‍ूसिफर की तुलना में इस फिल्‍म का स्‍तर काफी भव्‍य है लेकिन कहानी में कसावट की कमी है। मुरली गोपी लिखित कहानी सीक्वल को लेकर अपेक्षित गहराई प्रदान करने में असफल रहे हैं। शुरुआत काफी धीमी गति से होती है फिर मोहनलाल की स्‍टाइलिश एंट्री के बाद कहानी में थोड़ा गति आती है। कहानी कुरैशी, कबुगा के बीच रंजिश, चीनी ड्रग गिरोह और ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआई6 तथा केरल की राजनीतिक घटनाक्रम के बीच झूलती है। जब तक आप एक मुद्दा समझते हैं कहानी तेजी से दूसरी ओर चली जाती है। एम्‍पुरान की पृष्ठभूमि में इस बार जायद मसूद के अतीत को खंगाला गया है लेकिन उसके लिए गढ़ा गया उसका अतीत और उससे जुड़े पात्र यानी बलराम (अभिमन्‍यु सिंह) और उसके साथी मुन्‍ना को समुचित तरीके से गढ़ा नहीं गया है। जायद किस प्रकार पाकिस्‍तानी कैंप में पहुंचता है यह भी पूरी तरह स्‍पष्‍ट नहीं हैं। खलनायक बने बलराम की कोई पृष्ठभूमि नहीं है, न ही उनका पात्र प्रभावी बन पाया है। इस बार कहानी में सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर गोवर्धन (इंद्रजीत) का पात्र भी बहुत कमजोर दिखा है।

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फिल्‍म की अवधि भी काफी ज्‍यादा है। उसे चुस्‍त एडीटिंग से कम करने की भरपूर संभावना थी। इसके अलावा कहानी इराक, फ्रांस, अफ्रीका, लंदन समेत कई देश में आती-जाती है उससे कई बार समझना भी कठिन हो जाता है। हालांकि हेलिकाप्‍टर से गोलियां बरसाते और गाडि़यों को उड़ाते दृश्‍य अच्‍छे बन पड़े हैं। फिल्‍म पालिटिकल थ्रिलर है लेकिन राजनीतिक प्रसंग के दांवपेंच बहुत दिलचस्‍प नहीं बन पाए हैं। फिल्‍म के कई विजुअल्स शानदार हैं। उसका श्रेय सिनेमैटोग्राफर सुजीत वासुदेव को जाता है। सबसे अहम बात यह है कि अगर आपने मूल फिल्‍म नहीं देखी है तो सीक्वल के पात्रों को समझने में दिक्‍कत पेश आएगी।

एक्टिंग और डायरेक्शन

कलाकारों में लूसिफर यानी मोहनलाल की एंट्री फिल्‍म में करीब एक घंटे बाद होती है। वह अपने चिरपरिचित अंदाज में नजर आते हैं। पृथ्‍वीराज सुकुमारन के हिस्‍से में इस बार भी एक्‍शन दृश्‍य आए हैं उसमें वह अच्‍छे लगे हैं। उनका फोकस इस बार कहानी पर कम फिल्‍म को हॉलीवुड स्‍टाइल में बनाने का ज्‍यादा दिखा। मंजू वारियर के हिस्‍से में लूसिफर की तुलना में ज्‍यादा दृश्‍य आए हैं। दी गई भूमिका में वह प्रभाव छोड़ती है लेकिन उनकी बेटी के पात्र को इस बार सतही तौर पर दिखाया गया है। टोविनो थामस के पात्र को भी समुचित तरीके से गढ़ा नहीं गया है।

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फिल्‍म के अंत में तीसरा पार्ट में लूसिफर की पृष्ठभूमि को खंगालने की झलक दे दी गई है। कुल मिलाकर फिल्‍म स्‍टाइल में अव्‍वल है लेकिन विषय वस्‍तु में कमजोर है।ये भी पढ़ें- L2 Empuraan Twitter reviews: 60 करोड़ कमा चुकी Mohanlal की मूवी ने किया धमाका या हुई फुस्स? जनता ने सुनाया फैसला

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