My Melbourne Review: चार अनूठी कहानियों में दिखी पहचान और संघर्ष की झलक, थिएटर जाने से पहले पढ़ें रिव्यू
माय मेलबर्न (My Melbourne) फिल्म चार कहानियों के जरिए पहचान और संघर्ष की भावनात्मक यात्रा को दर्शाती है। ओनिर इम्तियाज अली रीमा दास और कबीर खान के निर्देशन में बनी यह एंथोलॉजी फिल्म दर्शकों को गहराई से जोड़ती है। वास्तविक घटनाओं से प्रेरित यह फिल्म रिश्तों चुनौतियों और आत्म-खोज की कहानी को संवेदनशीलता और दमदार अभिनय के साथ पेश करती है।
प्रियंका सिंह, मुंबई। एंथोलाजी फिल्मों की खासियत यह होती है कि एक ही फिल्म में चार अलग कहानियां देखने को मिल जाती हैं, हालांकि थीम एक ही होती है। माय मेलबर्न फिल्म भी चार कहानियों नंदिनी, एमा, जूल्स और सितारा से मिलकर बनी है, जिसका निर्देशक चार अलग निर्देशकों ने किया है। थीम है अपनी पहचान को ढूंढने और उसे अपनाने की कवायद।
फिल्म की कहानी
फिल्म शुरू होती है ओनिर निर्देशित कहानी नंदिनी के साथ। मिहिर (मौली गांगुली) अपनी पत्नी की अस्थियां लेकर मेलबर्न पहुंचता है। उसका समलैंगिक बेटा इंद्रनील (रीमा दास) अपने पार्टनर के साथ रहता है। मिहिर ने इस कारण इंद्रनील को उसकी मां से मिलने नहीं दिया था। लेकिन अब पिता-पुत्र को साथ अस्थियों का विसर्जन करना है। दूसरी कहानी जूल्स इम्तियाज अली की है। जूल्स (कैट स्टेवर्ट) बेघर है। शादी करके मेलबर्न आई साक्षी (आरुषि शर्मा) पति की उपेक्षा का शिकार है। वह एक रेस्त्रां में काम करती है। दो विपरित जीवन जी रही जूल्स और साक्षी की जिंदगी एक-दूसरे से जुड़ती है।
सामाजिक अपेक्षाओं, व्यक्तिगत चुनौतियों के साथ साक्षी, जूल्स को देखकर अपनी आजादी के लिए खड़े होना सीखती है। तीसरी कहानी रीम दास निर्देशित एमा (रियाना स्काय लासन) की है, जो डांसर बनना चाहती है, लेकिन उसे जो सिंड्रोम है, जिससे उसकी सुनने की क्षमता धीरे कम हो रही है। अपने भविष्य को लेकर चिंतित एमा की मुलाकात एक सफल बधिर डांसर से होती है, जिसने इस कमजोरी को अपनी ताकत बनाकर अपने सपनों को पूरा किया है। चौथी कहानी कबीर खान निर्देशक सितारा है। अफगानिस्तान में तालिबानियों के कब्जे के बाद सितारा अपनी मां और बहन के साथ मेलबर्न आ गई है। सितारा अफगानिस्तान में अपने स्कूल की क्रिकेट टीम में हुआ करती थी। मेलबर्न के स्कूल में भी उसे क्रिकेट टीम में खेलने का मौका मिलता है। अफगान रिफ्यूजी होने के कारण सितारा की मां नहीं चाहती कि सितारा बहुत ज्यादा लोगों की नजरों में आए। हालांकि सितारा क्रिकेट के जरिए एक नए देश में अपने लिए अपनापन तलाश लेती है।
Photo Credit- IMDB
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कैसी है फिल्म?
कमर्शियल फिल्मों की तेज-तर्रार संगीत, गानों और एडिटिंग से अलग माय मेलबर्न की कहानी अपनी धीमी गति पर चलती है। अपनी असली पहचान को ढूंढते हुए अनजान देश में खुद के लिए अपनापन तलाशते फिल्म के सभी पात्रों से जुड़ाव महसूस होता है। कई फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जा चुकी यह फिल्म सिनेमाघरों में आकर उस सोच को बदलने की दिशा मे एक कदम साबित होती है, जिसमें कहा जाता है कि फेस्टिवल फिल्में सिनेमाघरों के लिए नहीं बनी हैं। चार अलग निर्देशकों के विजन को सिनेमैटोग्राफर ब्रैड फ्रांसिस अपने कैमरे से एक कर देते हैं। कब कहानी एक से दूसरी कहानी की ओर बिना किसी विजुअल अवरोध के बढ़ जाती है, पता ही नहीं चलता है। रीमा दास फिल्म एडिटिंग टीम से भी जुड़ी थीं, इसलिए वह भी अलग कहानियों के बीच एकरूपता बनाए रखने में कामयाब होती हैं।
एक्टिंग और डायरेक्शन
सितारा अमीरी ने अपने पात्र को खुद निभाया है। उनकी कहानी दिल को छूती है। कहीं से अहसास नहीं होता है कि वह पहली बार कैमरा का सामना कर रही हैं। जब कैच पकड़ते वक्त सितारा का हिजाब सिर से उतर जाता है, उस दौरान आस्ट्रेलियाई विद्यार्थियों का घेरा बनाकर उन्हें संभालना, आंखें नम करता है। आरुषि शर्मा, साक्षी के रोल में उन तमाम लड़कियों के लिए उदाहरण बनती हैं, जो दूसरे देश में अपने पति के साथ घुट रही हैं और आवाज नहीं उठा पाती हैं। रियाना स्काय लासन, कैट स्टेवर्ट का अभिनय दमदार है। अर्क दास, माली गांगुली कम शब्दों में भी अपनी मौजूदगी का अहसास कराते हैं।
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