जलवायु परिर्वतन के खतरों से निपटने को तैयार हो रही अरावली ग्रीन वॉल

जलवायु परिवर्तन आज न केवल एक पर्यावरणीय संकट है, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का भी प्रमुख कारण बनता जा रहा है। भारत जैसे विकासशील देश में, जहां जनसंख्या दबाव और शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है, वहां जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और भी गंभीर हो सकते हैं। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि हम प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पुनर्स्थापन की दिशा में ठोस कदम उठाएं। इसी संदर्भ में “अरावली ग्रीन वॉल” की परिकल्पना सामने आई है। यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक अहम कदम है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन से निपटने का एक स्थायी समाधान भी प्रस्तुत करती है। आइए विस्तार से जानें कि अरावली ग्रीन वॉल क्या है, इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी, यह कैसे काम करेगी, और इसका प्रभाव क्या हो सकता है।

राजस्थान के रिटायर्ड पीसीसीएफ और वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. डीएन पांडे ने कहा कि जैव विविधता से समृद्ध राजस्थान के लिए अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट हमारे सुखद भविष्य की महत्वाकांक्षी परियोजना है. इस पर राज्य सरकार भी संवेदनशील है और प्रकृति और प्राकृतिक तंत्रों के संरक्षण की बड़ी शुरुआत है. प्रोजेक्ट में पौधारोपण के साथ हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता इकोसिस्टम को बचाने की हो, ताकि और बदतर स्थितियां पैदा न होने पाएं.

अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट परिचय:
यह हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली राज्यों को शामिल करते हुए अरावली पर्वत शृंखला के चारों ओर 1,400 किमी लंबी और 5 किमी. चौड़ी ग्रीन बेल्ट बफर बनाने की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है।
पहले चरण में 75 जल निकायों का कायाकल्प किया जाएगा, जिसकी शुरुआत अरावली परिदृश्य के प्रत्येक ज़िले में पाँच जल निकायों से होगी।
यह गुड़गाँव, फरीदाबाद, भिवानी, महेंद्रगढ़ और हरियाणा के रेवाड़ी ज़िलों में निम्नीकृत भूमि को शामिल करेगा।
यह योजना अफ्रीका की ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ परियोजना से प्रेरित है, जो सेनेगल (पश्चिम) से लेकर जिबूती (पूर्व) तक विस्तृत है, यह वर्ष 2007 में लागू हुई थी।
उद्देश्य:
भारत की ग्रीन वॉल परियोजना का व्यापक उद्देश्य भूमि क्षरण की बढ़ती दरों और थार रेगिस्तान के पूर्व की ओर विस्तार को नियंत्रित करना है।
पोरबंदर से पानीपत तक के लिये हरित पट्टी की योजना बनाई जा रही है, जो अरावली पर्वत शृंखला में वनीकरण के माध्यम से बंजर भूमि को पुनर्स्थापित करने में सहायता करेगी। यह पश्चिमी भारत और पाकिस्तान के रेगिस्तान से आने वाली धूल के लिये एक अवरोधक के रूप में भी काम करेगा।
इसका उद्देश्य पेड़-पौधे लगाकर अरावली शृंखला की जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करना है, जो कार्बन पृथक्करण में मदद करेगा, वन्यजीवों के लिये आवास प्रदान करेगा और जल की गुणवत्ता एवं मात्रा में सुधार करेगा।
वनीकरण, कृषि-वानिकी और जल संरक्षण गतिविधियों में स्थानीय समुदायों की भागीदारी से सतत् विकास को बढ़ावा दे सकती है।
इसके अतिरिक्त यह आय और रोज़गार के अवसर पैदा करने, खाद्य सुरक्षा में सुधार करने तथा सामाजिक लाभ प्रदान करने में मदद करेगा।
जलवायु पर प्रभाव:

अरावली का उत्तर- पश्चिमी भारत और उससे आगे की जलवायु पर प्रभाव है।
मानसून के दौरान पर्वत शृंखला धीरे-धीरे मानसूनी बादलों को शिमला और नैनीताल की तरफ पूर्व की ओर ले जाती है, इस प्रकार यह उप-हिमालयी नदियों का पोषण करने और उत्तर भारतीय मैदानों को उर्वरता प्रदान करने में मदद करती है।
सर्दियों के महीनों में यह उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों (पार-सिंधु और गंगा) को मध्य एशिया से आने वाली ठंडी पछुआ पवनों के हमले से रक्षा करती है।
सर्दियों के महीनों में यह उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों (सिंधु और गंगा) को मध्य एशिया से ठंडी पश्चिमी हवाओं के हमले से बचाती है।
जलवायु परिवर्तन की चुनौती जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अब स्पष्ट रूप से दिखने लगे हैं:

तापमान में अत्यधिक वृद्धि,
अनियमित वर्षा,
बेमौसम बाढ़ और सूखा,
जलस्रोतों का सूखना।
ये सभी कृषि, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर सीधे प्रभाव डालते हैं। विशेषकर राजस्थान जैसे राज्य में, जहां जल की कमी और सूखा पहले से ही आम समस्याएं हैं, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और भी अधिक गंभीर हैं। डॉ. पाण्डेय उदयपुर के अरण्य भवन सभागार में ग्रीन पीपुल सोसायटी एवं वन विभाग राजस्थान के तत्वावधान में अरावली ग्रीन वॉल परियोजना एवं प्राकृतिक जलवायु समाधान विषय पर आयोजित विशेष कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन के माध्यम से इस परियोजना के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की, साथ ही अन्य राज्यों की तुलना में राजस्थान की स्थिति, दक्षिण राजस्थान की समृद्ध जैव विविधता, चुनौतियों और इस जैव विविधता को बचाने के लिए हमारी जिम्मेदारियों पर भी प्रकाश डाला।

इसके साथ ही प्राकृतिक जलवायु समाधान पर उपस्थित विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श किया। उन्होंने यह भी कहा कि इस पूरे कार्य के लिए सरकार के साथ-साथ राजस्थान का प्रत्येक व्यक्ति जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि देश के 6.6 लाख गांवों में 15 लाख से अधिक तालाब हैं जो हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को जीवन दे रहे हैं। उन्होंने प्राकृतिक जलवायु समाधान के रूप में इन जल स्रोतों के संरक्षण की आवश्यकता पर भी बल दिया। प्रारंभ में ग्रीन पीपल सोसायटी के अध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त सीसीएफ राहुल भटनागर ने मुख्य वक्ता डॉ. पांडे का स्वागत किया तथा सोसायटी द्वारा किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी। इस अवसर पर सोसायटी के उपाध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त आईएएस विक्रम सिंह सहित सोसायटी के सदस्यों एवं प्रतिभागियों ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन प्रबंध सचिव एवं सेवानिवृत्त एसीएफ डॉ. सतीश कुमार शर्मा ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन शरद श्रीवास्तव ने किया।

अरावली ग्रीन वॉल परियोजना अफ्रीका की ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ परियोजना से प्रेरित: डॉ. पांडे ने कहा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की अरावली ग्रीन वॉल परियोजना अफ्रीका की ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ परियोजना से प्रेरित है। इसका उद्देश्य पहाड़ियों पर हरित आवरण को बहाल करना है, जो थार से दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत तक रेगिस्तान जैसी स्थिति के विस्तार को रोकने वाली एकमात्र बाधा है। इस परियोजना का लक्ष्य वर्ष 2027 तक चार राज्यों हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली में लगभग 1.15 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र को पुनर्स्थापित करना है।
आरामपुरा जैसे नए जंगल विकसित होने में लगेंगे एक हजार साल: डॉ. पांडे ने दक्षिण राजस्थान में वन संरक्षण की संस्कृति के तथ्य पर प्रकाश डाला और संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि यदि हमारे प्रतापगढ़ में आरामपुरा क्षेत्र जैसे घने जंगल को नष्ट करना है तो कुछ साल लगेंगे, लेकिन यदि ऐसे जंगल को फिर से विकसित करना है तो कम से कम एक हजार साल लगेंगे। उन्होंने उपस्थित पर्यावरणविदों एवं विशेषज्ञों से अपील की कि आने वाली पीढ़ी के सुनहरे भविष्य के लिए उपलब्ध जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में प्रयास करना बहुत जरूरी है।
राजस्थान की सबसे स्वच्छ झील है ‘बड़ी झील’: डॉ. पांडे ने कहा कि झीलों की नगरी में स्थित बड़ी झील राजस्थान की सबसे स्वच्छ झील है, क्योंकि यह जंगल से घिरी हुई है और यहां कोई सीवेज नहीं है। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि इसके आसपास होटल बनाए जा रहे हैं और यदि इसमें सीवेज पहुंच गया तो कोई भी इसके विनाश को रोक नहीं पाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि शहरी वनों का संरक्षण और विकास आवश्यक है, क्योंकि कोई भी शहर शहरी वन के बिना स्मार्ट सिटी नहीं बन सकता।
इन विषयों पर भी प्रकाश डाला गया: डॉ. पांडे ने विभिन्न तथ्यों का खुलासा करते हुए बताया कि भारत वृक्ष प्रजातियों के लिए कई खतरों का केंद्र है और इस प्रकार कार्बन, जैव विविधता और आजीविका खतरे में है। उन्होंने बताया कि भारत में 2010-2011 में चिन्हित किये गये बड़े वृक्षों में से लगभग 11 प्रतिशत 2018 तक लुप्त हो गये। इसके अलावा, 2018-2022 की अवधि के दौरान 5 मिलियन से अधिक बड़े वृक्ष भी गायब हो गए हैं। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक जलवायु समाधान के मामले में राजस्थान शीर्ष 10 राज्यों में शामिल है। उन्होंने बताया कि घास के मैदानों की वनस्पति की दृष्टि से राजस्थान में 188 वंशों की 375 प्रजातियां विद्यमान हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान में फसल भूमि और घास भूमि में सर्वाधिक संभावनाएं हैं, लेकिन लेंटाना और जूलीफ्लोरा हमारे लिए बड़ी चुनौती है।
चर्चा में क्यों? केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के अवसर पर अरावली ग्रीन वॉल परियोजना का उद्घाटन किया, साथ ही वानिकी हस्तक्षेपों के माध्यम से मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण की समस्या के समाधान के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना का अनावरण भी किया।
अरावली हरयाली की दीवार के फायदे वनों के विकास से इस क्षेत्र के पर्यावरण को नया जीवन मिलेगा और हरे-भरे क्षेत्र ऑक्सीजन के बड़े उत्पादक होंगे तथा बड़े पैमाने पर कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करेंगे। परियोजना का उद्देश्य अरावली क्षेत्र को पारिस्थितिकी और जैव-विविधता की दृष्टि से स्वस्थ बनाना है, साथ ही इस पट्टी में वर्षा या भूजल का संचयन करना है तथा वनरोपण, कृषि-वानिकी और जल संरक्षण गतिविधियों से आसपास के लोगों को आय और रोजगार के नए अवसर के साथ सामाजिक लाभ प्रदान करने में मदद मिलेगी। 2030 तक भूमि क्षरण रोकने के संयुक्त राष्ट्र के संकल्प के प्रसार को रोकना एक कठिन चुनौती है। यह परियोजना गुजरात के पोरबंदर से लेकर हरियाणा के पानीपत तक हरियाली के माध्यम से जुड़ेगी। ऐसे समय में जब भारत सहित दुनिया के देश मरुस्थलीकरण से त्रस्त हैं, तब यह परियोजना पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन की दिशा में लाभकारी सिद्ध होगी।
मरुस्थलीकरण रोकने की राह में चुनौतिया भूमि प्रदूषण, औद्योगीकरण और शहरीकरण की प्रक्रियाएं भूमि को बंजर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। वनों की कटाई, अनियंत्रित कृषि, खनन, खेतों में रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग, फसल चक्र की उपेक्षा, भूजल का अत्यधिक दोहन भी भूमि को बंजर बना रहे हैं। यह समस्या अक्सर स्थायी रूप ले लेती है और किसी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और समाज को गहराई से प्रभावित करती है। एक अनुमान के अनुसार, भारत की एक तिहाई भूमि कटाव की चपेट में है, जिससे हर साल भारत के सकल उत्पाद में 2.5 प्रतिशत की हानि होती है। बढ़ती जनसंख्या और बढ़ती मांग के कारण गुणवत्ता में लगातार गिरावट आ रही है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर साल दुनिया भर में 24 अरब टन उपजाऊ मिट्टी बंजर हो जाती है। इस प्रकार भूमि क्षरण न केवल एक प्रमुख पर्यावरणीय समस्या है, बल्कि यह कई अन्य आर्थिक और सामाजिक संकटों का भी स्रोत है। संयुक्त राष्ट्र के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भूमि कटाव के कारण अनाज उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव से खाद्य आपूर्ति में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो वर्ष 2050 तक फसल उत्पादन में 10 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।
अरावली ग्रीन वाल में चुनौतिया निर्दिष्ट परियोजना क्षेत्रों में रोपण के लिए उपयुक्त वृक्ष प्रजातियों का चयन और उनकी उत्तरजीविता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। यह परियोजना वित्त की कमी से भी प्रभावित हो सकती है तथा राजनीतिक स्थिरता भी एक महत्वपूर्ण कड़ी है, क्योंकि यह परियोजना तीन राज्यों तथा एक केंद्र शासित प्रदेश से संबंधित है तथा इसकी प्रगति एवं सफलता इन प्रदेशों की सरकारों के परियोजना के प्रति रवैये से प्रभावित हो सकती है।
निष्कर्ष “अरावली ग्रीन वॉल” न केवल एक पर्यावरणीय परियोजना है, बल्कि यह एक सामाजिक आंदोलन बन सकता है। यदि इसे सही तरीके से लागू किया गया, तो यह न केवल जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम करने में सहायक होगा, बल्कि लाखों लोगों के जीवन स्तर को भी ऊपर उठाएगा। यह परियोजना एक प्रेरणास्रोत बन सकती है—दिखा सकती है कि किस तरह मानव और प्रकृति के बीच संतुलन कायम रखते हुए विकास संभव है। जब सरकार, समाज और आम जनता मिलकर किसी उद्देश्य के लिए काम करें, तो किसी भी चुनौती का समाधान संभव है। अरावली ग्रीन वॉल एक हरियाली की दीवार नहीं, बल्कि भविष्य की सुरक्षा की दीवार है—जिसे हमें मिलकर मजबूत बनाना है। हरित दीवार एक बड़े निवेश का हिस्सा है, जिससे आने वाली कई पीढ़ियों को लाभ मिलेगा और भविष्य में क्षेत्र में पौधे लगाने और जंगल विकसित करने से पर्यावरण को नया जीवन मिलेगा। भूमि क्षरण को रोकने के लिए हमें प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करना होगा तथा ऐसी मानवीय गतिविधियों पर अंकुश लगाना होगा जो भूमि के साथ-साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाती हैं और ग्रीन वॉल का निर्माण इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।