वोटर लिस्ट में 18 लाख मृतक, 7 लाख लोगों के नाम दो स्थानों पर और… बिहार SIR पर चुनाव आयोग ने क्या कहा?

नई दिल्ली. बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अंतिम चरण में चल रहा है. एसआईआर परीक्षण में 18 लाख मृतक मिले. साथ ही ये भी तथ्य उजागर हुए कि 16 लाख वोटर दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में जा चुके हैं और 7 लाख मतदाताओं का दो स्थानों पर नाम है. बिहार में अब तक 7,89,69,844 मतदाताओं में से 7,16,04,102 यानी 90.67 प्रतिशत गणना प्रपत्र प्राप्त हो चुके हैं. डिजिटल गणना प्रपत्रों की संख्या 7,13,65,460 यानी 90.37 प्रतिशत है. जहां अब तक 52,30,126 यानी 6.62 प्रतिशत निर्वाचक अपने पते पर अनुपस्थित पाए गए तो वहीं 18,66,869 यानी 2.36 प्रतिशत मृत वोटर पाए गए. अब तक स्थायी रूप से स्थानांतरित मतदाताओं की संख्या 26,01,031 यानी 3.29 प्रतिशत है. एक से अधिक स्थानों पर नामांकित मतदाता 7,50,742 यानी 0.95 प्रतिशत हैं, जबकि अप्राप्त वोटर (जिन निर्वाचकों का पता नहीं चल पा रहा है) 11,484 यानी 0.01 प्रतिशत हैं. कुल सम्मिलित निर्वाचक 7,68,34,228 यानी 97.30 प्रतिशत हैं। अब सिर्फ 21,35,616 यानी 2.70 प्रतिशत मतदाताओं के गणना प्रपत्र प्राप्त होने शेष हैं.

भारत निर्वाचन आयोग द्वारा जारी प्रेस नोट के अनुसार, बिहार में चल रहे एसआईआर में यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास तेज कर दिए गए हैं कि सभी पात्र मतदाताओं को 1 अगस्त को प्रकाशित होने वाली ड्रॉफ्ट मतदाता सूची में शामिल किया जाए. राज्य में सभी 12 प्रमुख राजनीतिक दलों के जिला अध्यक्षों द्वारा नियुक्त लगभग 1 लाख बीएलओ, 4 लाख वालंटियर्स और 1.5 लाख बीएलए समेत पूरी चुनाव मशीनरी उन मतदाताओं को ढूंढने के लिए मिलकर काम कर रही है, जिन्होंने अभी तक अपने गणना फॉर्म (ईएफ) जमा नहीं किए हैं या जो अपने पते पर नहीं पाए गए हैं.

मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला मुख्य कार्यकारी अधिकारी, निर्वाचन अधिकारी और बीएलओ ने सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ बैठकें की हैं और उन 21.36 लाख मतदाताओं की विस्तृत लिस्ट साझा की है, जिनके फॉर्म अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं, तथा लगभग 52.30 लाख ऐसे मतदाताओं की भी लिस्ट शेयर की है, जिनकी कथित तौर पर मृत्यु हो चुकी है या जो स्थायी रूप से स्थानांतरित हो चुके हैं या जो एक से अधिक स्थानों पर नामांकित हैं. 1 अगस्त से 1 सितंबर, 2025 तक आम जनता में से कोई भी व्यक्ति ड्राफ्ट मतदाता सूची में कोई भी नाम जोड़ने, हटाने या सुधार करने के लिए आपत्तियां दर्ज करा सकता है.

निर्वाचन आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के जारी विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को उचित ठहराते हुए कहा है कि यह सूची से ‘अयोग्य व्यक्तियों को हटाकर’ चुनाव की शुचिता को बढ़ाता है. बिहार से शुरू कर पूरे भारत में मतदाता सूची के एसआईआर का निर्देश 24 जून को दिया गया. इस निर्देश को चुनौती देने वाली याचिका के संबंध में निर्वाचन आयोग द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि कानूनी चिंताओं के बावजूद आयोग एसआईआर-2025 प्रक्रिया के दौरान पहचान के सीमित उद्देश्य के लिए आधार, मतदाता कार्ड और राशन कार्ड पर पहले से ही विचार कर रहा है.

आयोग ने एक विस्तृत हलफनामे में कहा, “एसआईआर प्रक्रिया मतदाता सूची से अपात्र व्यक्तियों को हटाकर चुनावों की शुचिता बढ़ाती है. मतदान का अधिकार लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धाराओं 16 और 19 के साथ अनुच्छेद 326 और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 62 से प्राप्त होता है जिसमें नागरिकता, आयु और सामान्य निवास के संबंध में कुछ पात्रताओं की बात की गई है. एक अपात्र व्यक्ति को मतदान का कोई अधिकार नहीं है और इसलिए वह इस संबंध में अनुच्छेद 19 और 21 के उल्लंघन का दावा नहीं कर सकता.”

इसमें शीर्ष अदालत के 17 जुलाई के उस आदेश का हवाला दिया गया, जिसमें निर्वाचन आयोग से एसआईआर-2025 के लिए आधार, मतदाता और राशन कार्ड पर विचार करने को कहा गया था. इसमें कहा गया है, “पहले से ही व्यक्त कानूनी चिंताओं के अलावा, इन दस्तावेज पर, वास्तव में, आयोग द्वारा एसआईआर प्रक्रिया के दौरान, पहचान के सीमित उद्देश्य के लिए पहले से ही विचार किया जा रहा है.”

आयोग ने कहा, “एसआईआर आदेश के तहत जारी किए गए गणना प्रपत्र के अवलोकन से पता चलता है कि गणना प्रपत्र भरने वाला व्यक्ति आधार संख्या स्वेच्छा से दे सकता है. ऐसी जानकारी का उपयोग लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23(4) और आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 की धारा नौ के अनुसार पहचान के उद्देश्य से किया जाता है.”

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23(4) में प्रावधान है कि “निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 के प्रावधानों के अनुसार उस व्यक्ति से भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा जारी किया गया आधार नंबर मांग सकता है.”

साथ ही 2016 के अधिनियम की धारा नौ कहती है कि आधार नंबर नागरिकता या निवास आदि का प्रमाण नहीं है. निर्वाचन आयोग ने कहा कि बिहार से अस्थायी रूप से अनुपस्थित प्रवासियों को छोड़कर प्रत्येक मौजूदा मतदाता को बूथ स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) द्वारा उनके घरों पर व्यक्तिगत रूप से पहले से भरे हुए उनके गणना प्रपत्र उपलब्ध कराए जाते हैं.

उसने कहा, “उपरोक्त वर्णित व्यक्तियों की तुलना में किसी भी मतदाता को कोई कठिनाई नहीं होती है. पिछले सभी एसआईआर में भी यही पद्धति अपनाई गई है. इसके अलावा, बीएलओ, बीएलए (बूथ स्तरीय एजेंट) और स्वयंसेवक उन सभी वास्तविक मतदाताओं को पात्रता दस्तावेज प्राप्त करने में सक्रिय रूप से सहायता कर रहे हैं जिन्हें सहायता की आवश्यकता है….”

निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची में सभी पात्र लोगों को शामिल करने के लिए ‘हर संभव प्रयास’ करने का आश्वासन दिया और एक विशेष प्रयास के रूप में, राजनीतिक दलों को उन मतदाताओं की सूची दी गई, जिनके गणना फार्म प्राप्त नहीं हुए थे, ताकि उनका पता लगाया जा सके और उनके बीएलए के माध्यम से उनके गणना फार्म प्राप्त किए जा सकें. गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं तथा नागरिक संस्थाओं के सदस्यों सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 24 जून के आदेश नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.

आयोग ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा कि किसी भी प्रकार के भेदभाव का आरोप नहीं लगाया जा सकता. उसने कहा, “जहां तक अनुच्छेद 14 और 325 का संबंध है, इसमें कोई उल्लंघन नहीं हुआ है, क्योंकि किसी भी व्यक्ति के साथ नस्ल, जाति, धर्म या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा रहा है, न ही समान और नामांकन के इच्छुक व्यक्तियों के साथ असमान व्यवहार किया जा रहा है.”

इसके अलावा, निर्वाचन आयोग ने कहा कि 2003 की मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों की पहले ही गहन पुनरीक्षण के माध्यम से जांच की जा चुकी है और वे तब से मतदाता बने हुए हैं. उसने कहा कि परिणामस्वरूप, वे उन व्यक्तियों की श्रेणी में नहीं आते जिनके नाम जनवरी 2025 की मतदाता सूची में हैं. आयोग ने कहा, “इस प्रकार, अनुच्छेद 14 के उल्लंघन का कोई दावा नहीं किया जा सकता.”

निर्वाचन आयोग ने कहा कि जो व्यक्ति 26 जुलाई तक पात्रता दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सकता, वह दावा एवं आपत्ति अवधि में ऐसा कर सकता है तथा न्यायपालिका के सदस्यों और जनप्रतिनिधियों जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों की तुलना में आम मतदाताओं के साथ कोई भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं किया जा रहा है, क्योंकि उनके दस्तावेज घर से ही एकत्र किए जा रहे हैं.

शीर्ष अदालत ने 10 जुलाई को निर्वाचन आयोग से कहा कि वह बिहार में मतदाता सूची के चल रही एसआईआर के दौरान आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज माने. इस साल के अंत में बिहार में चुनाव होने हैं. न्यायालय इस मामले की सुनवाई 28 जुलाई को करेगा.

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