भारतीय मूल के फुटबॉलर भारत के लिए क्यों नहीं खेल सकते? जानें फीफा नियम.
Why PIO footballers cannot play for India: भारतीय फुटबॉल के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है भरोसेमंद स्ट्राइकर की कमी. भारतीय फुटबॉल टीम अब भी 40 वर्षीय फॉरवर्ड सुनील छेत्री पर निर्भर है. सुनील छेत्री ने पिछले महीने शिलांग में मालदीव के खिलाफ आयोजित मैत्री मैच में संन्यास से वापसी की. भारत ने एएफसी एशियाई कप क्वालीफायर की तैयारियों के खेले गए इस मैच में मालदीव पर 3-0 की जीत दर्ज की. यह 489 दिनों में भारत की पहली जीत थी.
उसके बाद अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के अध्यक्ष कल्याण चौबे ने कहा था कि वे विदेश में बसे भारतीय (ओसीआई) खिलाड़ियों को नेशनल टीम में शामिल करने की नीतियों पर काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर सबकुछ प्लान के मुताबिक हुआ तो विदेश में बसे भारतीय फुटबॉलर नेशनल टीम के लिए खेलते नजर आ सकते हैं. कल्याण चौबे ने यह भी कहा कि यह कदम भारतीय फुटबॉल के लिए ‘गेम-चेंजर’ हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘कई देश पहले ही ऐसा कर चुके हैं और जब तक हम स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं बनाते, तब तक हमारी राष्ट्रीय टीम के चयन में मौजूदा नियमों का पालन करना जारी रखेगा. हालांकि हमें यह पहचानना होगा कि इन खिलाड़ियों को शामिल करना भारतीय फुटबॉल के लिए ‘गेम-चेंजर’ हो सकता है.’
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बांग्लादेश से खेला इंग्लैंड में जन्मा खिलाड़ी
पिछले हफ्ते इंग्लैंड में जन्मे डिफेंसिव मिडफील्डर हमजा चौधरी ने भारत के खिलाफ 2027 एएफसी एशियाई कप क्वालीफायर मैच में बांग्लादेश को गोलरहित ड्रॉ खेलने में मदद की. लीसेस्टर सिटी अकादमी से निकले 27 वर्षीय चौधरी ने 2018-19 में इंग्लिश अंडर 21 टीम के लिए सात गेम खेले थे. लेकिन बांग्लादेशी मां के घर जन्म लेने और मजबूत इंग्लिश टीम में जगह ना बना पाने की संभावनाओं के चलते, उन्होंने पिछले साल बांग्लादेश के लिए अपना अंतरराष्ट्रीय करियर शुरू किया और आखिरकार अपना इंटरनेशनल डेब्यू किया.
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नहीं खेल सकते भारतीय मूल के व्यक्ति
हमजा चौधरी दक्षिण एशियाई मूल के एकमात्र फुटबॉलर नहीं हैं जो शीर्ष यूरोपीय लीग में खेल रहे हैं. ऐसे में, खिलाड़ियों के लिए उन देशों का प्रतिनिधित्व करना असामान्य नहीं है जहां उनके पूर्वज रहते थे. भले ही वे वहां पैदा न हुए हों या वहां पले-बढ़े न हों. मसलन बारबाडोस में जन्मे क्रिकेटर जोफ्रा आर्चर इंग्लैंड के लिए खेलते हैं (उनके पिता अंग्रेज हैं) या इंग्लैंड में जन्मे फुटबॉलर माइकल एंटोनियो जमैका के लिए खेलते हैं (जहां उनके माता-पिता हैं). लेकिन भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO) भारतीय फुटबॉल टीम के लिए नहीं खेल सकते, भले ही वे खुद इसके लिए तैयार हों. जानें इसके पीछे क्या वजह है.
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लेना होगा भारतीय पासपोर्ट
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पीआईओ वे लोग हैं जिनके पास किसी समय भारतीय पासपोर्ट था, या जिनके माता-पिता, दादा-दादी या परदादा-परदादी भारत में पैदा हुए और स्थायी रूप से यहीं रहते थे. या जिन्होंने किसी भारतीय नागरिक या किसी अन्य पीआईओ से विवाह किया है. ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) पीआईओ के लिए एक योजना है जो उन्हें कुछ वीजा और अन्य लाभ प्रदान करती है. लेकिन यह दोहरी नागरिकता नहीं है. मौजूदा भारतीय कानून किसी व्यक्ति को एक साथ भारत और किसी दूसरे देश की नागरिकता रखने की अनुमति नहीं देते हैं. पीआईओ या ओसीआई फुटबॉल खिलाड़ी जो भारत का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं, उन्हें पहले अपना विदेशी पासपोर्ट छोड़कर भारतीय पासपोर्ट लेना होगा.
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जानें क्या कहता है फीफा का नियम
ऐसा इसलिए है क्योंकि फीफा के नियमों के अनुसार जो खिलाड़ी किसी देश का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं, उन्हें उस देश का पासपोर्ट साथ रखना होगा. प्रतिनिधि टीमों के लिए खेलने की पात्रता को नियंत्रित करने वाले नियमों पर फीफा के बयान के अनुसार, “खिलाड़ी की पहचान और राष्ट्रीयता का वैध प्रमाण माना जाने वाला एकमात्र दस्तावेज एक स्थायी अंतरराष्ट्रीय पासपोर्ट होगा, जिसमें स्पष्ट रूप से और लैटिन अक्षरों में खिलाड़ी का पूरा नाम, जन्म तिथि, जन्म स्थान और राष्ट्रीयता लिखी होगी.”
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भारत की फीफा रैंकिंग भी एक मुद्दा
ऐसे कई उदाहरण हैं जब भारतीय मूल के खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम के लिए खेलना चाहते थे, लेकिन भारत की फीफा रैंकिंग कम होने के कारण चीजें जटिल हो जाती हैं. फीफा वेबसाइट के अनुसार वर्तमान में भारत 126वें स्थान पर है. लिवरपूल अकादमी से निकले स्कॉटिश प्रीमियर लीग के एक भारतीय खिलाड़ी ने बताया कि भारत की खराब रैंकिंग का मतलब है कि जो खिलाड़ी अपना यूरोपीय संघ का पासपोर्ट छोड़ देंगे, उन्हें वर्क वीजा की समस्या के कारण यूरोप में क्लब फुटबॉल खेलना मुश्किल होगा. इसी तरह के वर्क वीजा मुद्दों के कारण सुनील छेत्री क्वींस पार्क रेंजर्स के लिए अनुबंध नहीं कर पाए थे. इस खिलाड़ी से हाल ही में भारतीय कोच मनोलो मार्केज़ ने संपर्क किया था. उन्होंने कहा कि एआईएफएफ पीआईओ खिलाड़ियों को लाने का इच्छुक है, लेकिन भारत सरकार दोहरी नागरिकता की अनुमति न देकर अब तक इसमें बाधा डाल रही है.
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एआईएफएफ ने गठित की टास्क फोर्स
एआईएफएफ वेबसाइट के अनुसार चौबे ने कहा, “अगर हम बातचीत शुरू करना चाहते हैं और ऐसे खिलाड़ियों को भारतीय फुटबॉल टीमों का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति देने के विभिन्न तरीकों पर विचार करना चाहते हैं, तो हमें अपने तर्कों का समर्थन करने के लिए ठोस और व्यापक डेटा की जरूरत होगी. यही वजह है कि हमने एक टास्क फोर्स का गठन किया है.” उन्होंने कहा, “हम सबसे पहले दुनिया भर के ओसीआई और पीआईओ फुटबॉल खिलाड़ियों का एक व्यापक डेटाबेस तैयार करेंगे और फिर भारतीय फुटबॉल को आगे बढ़ाने के लिए ऐसे खिलाड़ियों का उपयोग करने के सर्वोत्तम तरीकों की तलाश करेंगे.”